zero budget farming (kudrati kheti ) kya hai ? hindi

जीरो बजट या कुदरती खेती क्या है ?
zero budget farming modern kheti
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जीरो बजट खेती  का अर्थ है  की  चाहे  कोई भी  फसल हो उसका उपज मोल ज़ीरो होना चाहिए। (कॉस्ट ऑफ़ प्रोडक्शन विल बी जीरो ) कुदरती खेती मैं इस्तेमाल होने  वाले साधन बाजार  से  खरीद  कर नहीं डाले  जाने चाहिए। वो सरे  साधन  और तत्व पौधे  की जड़ों के आस पास  ही पड़े  होते हैं। अलग  से  बन  बनाया  कुछ  भी डालने  की  जरूरत  नहीं   है। हमारी धरती  पूर्ण तरह से पालन हार  है।
हमारी फसलें धरती से  किनते  प्रतिशत  तत्त्व लेती  हैं ?
हमारी फसल सर  डेढ़ से दो प्रतिशत ही धरती से लेती हैं। बाकि अठानवे से साढ़े अठानवे प्रतिशत हवा और  पानी  से  लेती हैं। असल मैं आपको  फसल लेने  के  लिए  अलग से  कुछ  डालने  की जरूरत नहीं है। यही खेती  का  मूल विज्ञान  है। हरे पत्ते दिन भर खाद  का निर्माण करते हैं। हर एक हरा पता अपने आप ने एक खाद्य कारखाना है। जो  की  इन्ही  चीजों से खुराक  बनता  है। वो हवा  से  कार्बन  डॉइ ऑक्साइड और न्यट्रोजन  लेता है।  बरसात से इकठा हुआ  पानी  उसकी जड़ों तक पहुँच जाता है। सूरज की रौशनी से ऊर्जा  (१२/५ किलो कैलोरीज / वर्ग फुट एरिया प्रति दिन ) ले कर खुराक का निर्माण करता है। किसी भी फसल या पेड़ का पता दिन की दस घंटे धुप दौरान प्रति वर्ग फुट एरिया के हिसाब से साढ़े चार ग्राम खुराक तैयार करता है। इस साढ़े चार ग्राम से डेढ़  ग्राम दाने को या ढाई ग्राम फल या  पेड़  के  किसी  और  हिस्से  को  मिल  जाता  है  जहाँ  योग्यता  हो। खुराक बनने योग्य  तत्व वो  हवा या  पनि से  लेता  है। जो की बिलकुल फ्री है। इस  लिए  न  तो बादल  का कोई  बिल  है  और  न  हवा  पनि  का। सब मुफ्त  मिलता है। जब  पौधे  ये  तत्व लेते  हैं  तो किसी डॉक्टर  या यूनिवर्सिटी  की फरमाइश से  नहीं  लेते। अगर हम ये  मान भी  लेते  हैं तो जंगलों मैं ये परिकिरिया कौन सी  विश्विदियलय या डॉक्टर करते हैं ये  बिलकुल कुदरती होता है।
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अब बात ये  उठती है  की अगर ये सब धरती मैं है तो  डॉक्टर मिटी की जाँच किों  करवाते  हैं।  हाँ वो  ये  जान ने के लिए  की कौन से तत्व  हैं।  फिर डॉक्टर ये  कहते  हैं की आपकी मिटी मैं तत्व  तो हैं  लेकिन पौध इनको गरहन  नहीं कर सकता इस लिए  ऊपर  से  डालने पड़ेंगे।  असल मैं ये  बात  वैसे  ही है जैसे हमारे घर  में  खाना  पड़ा  हो  लेकिन पक  हुआ  न  हो  और  पकाने  वाले  भी घर  पे  न  हों।  और  हम  बाहर  से  पका  हुआ  खाना  मगवा  कर  खाएं।
उसी तरह  तत्व तो हमारी धरती में सभ  हैं  लेकिन उनको पकाने  वाले  जीव हमने  मार  दिए  हैं रसायन या कीट  नाशक  या  और  केमिकल डाल  कर।  अगर  हम इनकी व्रतों बंद  करके देसी तरीके से चलते हैं तो  हम जरूर उन खाना  बनने वाली किरिया  को चालु  कर  सकते हैं। इस  लिए  हमें  जीव  जन्तुओ  को पुनर स्थापित  करना  होगा।
हम अनत कोटि जीवों  को  कैसे खेत में  डाल  कर   खाद  बनने  के  काम लगा  सकते हैं ?
वो चमत्कारी साधन है हमारी देसी गाय  का  गोबर।  इसमें  करोड़ो सक्षम जीव होते हैं जो धरती मत को चाहिए हैं। ये धरती  को ऐसे जाग लगाती है जैसे दूध को दही। जैसे पूरी हांडी का दूध सिर्फ  एक चमच दही से ही दही बन जाता है  वैसे ही  गाए  का गोबर काम करता है। एक गाए  एक ग्राम के  गोबर   में तीन सो करोड़ से पांच सो करोड़ तक सक्षम जीव होते हैं।
एक एकर को कितना गोबर चाहिए ?
इस्पे खोज की गई थी  जिस से  सामने आया  है की ,महाराष्ट्र की गोलउ ,लाल कंधारी ,खिलारी
, देवनी डांगी ,निमारी   और  पश्चिमी भारत  की गिर ,थपरकर ,साहीवाल रडसिन्धी,  और दक्षिणी भारत  की  अमृत महल और  कृष्णा काठी ,  और  उत्तर  भारत  की हरयाणा नामी  गय  खोज  का  हिंसा  बानी  थी।
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इनके  ऊपर किये  गए तजुरबे  नीचे दिए  गए  हैं
पहला तजूर्बा:-  देसी गए का गोबर  और  मल मटर सबसे उत्तम है। लेकिन बैल और  भैंस का भी इस्तेमाल कर  सकते हैं। लेकिन  जरसी  गाये  का नहीं होना  चाहिए। किओंकी वो  गाये  नहीं  कोई  और  जीव  है। गाओं  में  से  कपिला  गाय  उत्तम  है। जिसका रंग कल  हो।
दूसरा  तजुरबा :- गोबर  जितना  ताज़ा हो  उतना  अच्छा  है  और  मुत्तर  जितना पुराण  हो  उतना  अच्छा  है।
तीसरा तजुरबा :- एक  गए  तीस  एकर तक  की खेती  के  लिए  जायज़   है। इसके  होते  हुए  रसायन खाद  इस्तेमाल करना  मतलब  फ्री  में जेब  कटवाना है। एक देसी  गाये एक दिन मैं   गियरह  किलो गोबर  देती है।  और  हमें  एक महीने  मैं  दस  किलो  गोबर  एक  एकर  में  डालना  चाहिए  मतलब  साल में  एक क्वीन्टल बीस  किलो  एक एकर  के  लिए  काफी  है। और  ट्राली  भर  के  गोबर  डालने  की जरूरत  नहीं है।
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गोबर  को  किस ढंग  से  खेत  में  डालना  है ?
जीवों के  मल  मुतर  से  पेड़ों  या  फसलों  के  फल  देने  का  गहरा  सम्बन्ध  है। आप  ने  देखा  होगा  के  जिस पेड़  को मीठे  फल  लगते  हैं  उसके  फल  खा  क्र  जीव  वाही  मल  मूत्र  करते हैं  जिस से पेड़ को  खुराक  मिलती   है  इसी  सिद्धांत  पे चलते। कुदरत  मीठा फल देती है और  बदले  में जीव पौधे  को  खुराक  देते  हैं खोज कर्ताओं ने गए  के  गोबर  मैं  गुड  डाला   जिस  से  की  सुखसम जेव जियादा बढे  और  जल्दी  बढे।
अगर  और  भी अच्छे परिणाम लेने हो  तो  प्रोटीन वाली दाल का भी  कुछ प्रतिशत  डालना   चाहिए। जिस  से जीव जल्दी सक्रिय  होते  हैं।
और  इन्ही  परिणामों  के  चलते नीचे  दी  गई  औषदि के  रूप  में  तैयार किये  जा  सकते  हैं।
जीव अमृत
गोबर  खाद
गाढ़ा  जीव  अमृत
सूखा  जीव  अमृत
जीव अमृत  छिड़काव
बीज अमृत
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पर कुदरती खेती या  आर्गेनिक खेती  कॉलम पढ़ते रहें और  जानकारी  हासिल करते  रहें धन्यवाद और  भी  लेक्चर कुदरती खेती  और  जीरो बजट  पर  हम  डालते  रहेंगे
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